आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट का उपचार
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एएसडी यानी (आट्रियल सेप्टल डिफेक्ट या दोष), जो जन्मजात समस्या है, ज्यादातर मामलों में बचपन में ही खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है और इससे किसी तरह की कोई परेशानी नही होती। वहीं दूसरी और यदि यह छेद, जो हृदय के ऊपरी कक्षों के बीच की दीवार में होता है, ज्यादा बड़ा हो तो यह खुद ठीक नही होता, और काफी समय के बाद इसका पता चल जाता है। कई बार यह समस्या 20 वर्ष की उम्र में ही पता चल जाती है, कई बार 30 में तो कई बार इससे भी ज्यादा।
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एएसडी की समस्या यदि गंभीर हो और इसकी जानकारी इसके घातक होने से पहले लग जाए तो इसका उपचार किया जा सकता है। वहीं कुछ मामलों में, जब इसकी जानकारी व्यक्ति को नहीं लग पाती तो यह जान-लेवा भी हो सकती है।
यदि बचपन में ही हो जाएं एएसडी की जाँच
जब एएसडी की जानकारी बचपन में ही हो जाती है, तो हृदय रोग विशेषज्ञय कुछ समय तक इस पर लगातार नजर बनाये रखते हैं। डॉक्टर ही इस बात का निर्णय लेते हैं, कि इसका उपचार कराना कब ठीक रहता है। यह बच्चे के स्वास्थ्य और स्थिति पर निर्भर करता है। यदि बच्चे को कोई और समस्या हो या वह स्वास्थ्य से कमजोर हो तो डॉक्टर ऑपरेशन की सलाह नही देते।
एएसडी और दवाइयाँ
इस बिमारी का इलाज दवाओं के द्वारा नहीं किया जा सकता हाँ लेकिन यह उपचार के सहायक के तौर पर जरूरी ज़रूर होती है। साथ ही, यह इस बिमारी की वजह से होने वाली परेशानियों जैसे दर्द, अतालता, घबराहट, बैचेनी और थकावट के लिए प्रयोग की जाती हैं।
सर्जरी
यदि डॉक्टर को लगता है कि समस्या खुद से ठीक हो सकती है, तो वह इसके लिए सर्जरी की सलाह दिए बिना रोगी पर लगातार नजर रखते हैं। यदि उन्हें लगता है कि यह समस्या वक्त के साथ ठीक हो जाएगी तो वह कुछ सावधानियों के साथ-साथ बच्चे का ठीक प्रकार से ध्यान रखने की सलाह देते हैं। वहीँ यदि छेद बड़ा या मध्यम आकार का हो और डॉक्टर को लगे कि इसका उपचार किया जाना ही बेहतर है, तो वह इसके लिए सर्जरी की सलाह देते हैं। यदि रोगी को अन्य कोई घातक समस्या जैसे फुफ्फुसीय उच्च रक्त-चाप की समस्या हो तो वह सर्जरी की सलाह नही देते।
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